लेखनी कविता - साँझ-4 - जगदीश गुप्त

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साँझ-4 / जगदीश गुप्त उत्सुक नयनों से देखा, सपनों का लिया सहारा। पर मिला नहीं उस छिव का, कोई भी कूल-किनारा।।४६।। कोमल कोमल पंखुरियाँ, लिपटीं थीं भोलेपन से। विह्वल अलि अभिलाषा ...

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